जयशंकर प्रसाद का जन्म 30-01-1889 मे वारासनी में हुआ । प्रसाद जी मुल्क कवि है। उन्होंने नाटक,कहानियां निबंध,और उपन्यास भी लिखे ।
उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से भारत की ऐतिहासिक संस्कृति की झलक मिलती है । उनके प्रमुख नाटक है - ' चंद्रगुप्त ' स्कंदगुप्त ' ध्रुवस्वामिनी '। कामायानी ' उनका सुप्रसिद्ध महाकाव्य है । उनका निबंध 14-01 -1937 को हुआ ।
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित इस कहानी की नायिका ममता है । ममता विधवा है । रोहतास दुर्ग के मंत्री चूड़ामणि अपने इस एक मात्र स्नेपलित। । पुत्री के दुखों से अत्यंत दुखी है ।
वे उसका भविष्य सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं किंतु पिता द्वारा भिजवाई स्वर्णा उपहारों के ममता लौटा देती है । डोलियो में छिपकर बैठे पढ़ान सैनिकों ने अगले ही दिन दुर्ग पर अधिकार कर लिया ।
चिंतामणि वही मारे गए किंतु ममता वहां से सुरक्षित काशी के उत्तर में स्थित एक विहार में जा पहुंची और वहीं रहने लगी । लंबा समय बीत गया । अपनी झोपड़ी में बैठे ममता दीप के आलोक में पाठ कर रही थी कि एक भीषण और हताश आकृति ने आश्रय मांगा ।
संकोचपूर्वक ममता ने अतिथि धर्म का पालन करते हुए इस प्रतीक को आश्रय दिया। वह पथिक कोई और नहीं ,हुमा था जिसने सुबह होने पर अपने एक सैनिक मिर्जा को वृद्धा की टूटी झोपड़ी बनवाने का आदेश दिया ।
ममता अब 17 वर्ष की हो चली थी । अचानक उसे एक अस्वआरोही की आवाज सुनाई दी जो उसकी झोपड़ी के बारे में पता पूछ रहा था ।
ममता उस मुगल अस्वआरोही को वह स्थान सौपकर अनंत यात्रा पर चली गई , उस स्थान पर एक आकर्षक मंदिर बनना जिसके शिलालेख पर सात्तो देश के नरेश हुमायूं और उसके पुत्र अकबर का नाम तो था किंतु ममता का कहीं जिक्र तक ना था ।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
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